राजनैतिक दलों के चिंतन के लिए काफी कुछ रह जाता है, चिंतन भी होगा और मंथन भी। क्या हम राजनीति और शतरंज में कुछ समानता पाते हैं, यदि हां तो हमें यह भी स्वीकार करना होगा कि दोनों में एक समानता है कि जीतता वही है जो अपने से अधिक सामने वाले खिलाड़ी के दिमाग को पढ़ना जानता हो, उसकी चाल पर नजरें गढ़ाए रखे और उसकी चाल के साथ ही अपनी जीत के प्रति आश्वस्त नजर आए। भविष्य जब भी राजनीति के इस दौर को लिखेगा तो उसे परिवर्तनों को उल्लेखित करना ही होगा। परिणाम आए, जय और पराजय के बाद सबकुछ शांत हो गया लेकिन लगातार पराजय किसी भी दल के लिए बेहद गहरी टीस छोड़ जाया करती हैं। मध्यप्रदेश पर बात करेंगे और यहां कांग्रेस की पराजय के बाद कद्ावर नेता Kamal Nath की रणनीति क्या होगी, कांग्रेस की रणनीति प्रदेश नेतृत्व को लेकर क्या होगी और आने वाले 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्र्रेस जीत के फार्मूले तक कैसे पहुंचेगी सभी मंथन के विषय हैं, हम बात करेंगे वरिष्ठ कांग्रेसी नेता कमलनाथ पर।
पूरा अनुभव झोंका बावजूद जीत छिटक गई :
मध्यप्रदेश की राजनीति में बीते कई सालों से भाजपा सत्ता में बनी हुई है, अंतराल के बाद 2018 में कांग्रेस ने जब कमलनाथ (Kamal Nath) के नेतृत्व में चुनाव लड़ा तब यहां कांग्रेस सालों बाद सत्ता में लौट आई, लेकिन यह समय बहुत जल्दी मुट्ठी की रेत की भांति हाथों से खिसक गया। कमलनाथ मुख्यमंत्री बने थे, 13 दिसम्बर 2018 सत्ता हाथ आई और 20 मार्च 2020 को सत्ता हाथ से खिसक गई और एक बार फिर शिवराजसिंह चौहान (Shivraj Singh Chauhan) के नेतृत्व के साथ सरकार में भाजपा लौट आई। यह सब क्यों हुआ, कैसे हुआ, कौन से पहलूओं पर कांग्रेस हर बार मात खा रही है, कहां देरी हुई, कहां अंदरूनी गुटबाजी ने भेदा, कहां प्रचार पर पिछड़े और कहां वादों पर जनता को भरोसा नहीं दिलवा पाए यह सब विषय कांग्रेस हाईकमान के लिए मंथन और चिंतन के अवश्य हैं लेकिन राजनीति को गहनता से समझने वाले और राजनीति को पसंद करने वालों के दिमाग में एक सवाल बार-बार उठ रहा होगा कि आखिर कमलनाथ जैसे वरिष्ठ नेता भी दोबारा जीत की दहलीज तक कांग्र्रेस को क्यों नहीं ले जा पाए ? उन्होंने अपना पूरा अनुभव इस चुनाव में अवश्य झोंका होगा लेकिन फिर भी सफलता हाथ नहीं लगी। जीत दूर छिटक गई।
कमलनाथ के कौशल से सभी वाकिफ हैं :
कमलनाथ कांग्रेस के लिए एक ऐसा नाम है जिनकी उम्र राजनीति में ही बीती है, वे वर्तमान में 77 वर्ष के हैं, उनकी उम्र बताती है कि राजनीति में उन्होंने अपना पूरा जीवन समर्पित किया है, जानकार बताते हैं कि एक दौर था कि उनके राजनीतिक सुझावों पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं का खेमा पूरे भरोसे से अमल किया करता था। समय बदला और राजनीति के कायदे भी बदल गए। कमलनाथ के कौशल से सभी वाकिफ हैं, वे कद्ावर नेता हैं और उसी के तौर पर पहचाने जाते हैं, यहां उन पर बात करने से पहले उनके विषय में कुछ जान लेते हैं। कमलनाथ का जन्म उत्तर प्रदेश के कानपुर में हुआ था, वह दून स्कूल के पूर्व छात्र भी रहे हैं उन्होंने बी.काम तक उच्च शिक्षा अर्जित की है। मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं और 1980 से 2014 तक 9 बार इसी क्षेत्र से लोक सभा में जीत दर्ज कर चुके हैं। इसके अलावा 1991-1995 केन्द्रीय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) पर्यावरण एवं वन, 1995-1996 केन्द्रीय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) वस्त्र, दिनांक 23 मई, 2004 से 2009 तक केन्द्रीय मंत्री वाणिज्य एवं उद्योग, 2009 से 18 जनवरी 2011 तक केन्द्रीय मंत्री सड़क परिवहन और राजमार्ग, दिनांक 19 जनवरी 2011 से 26 मई, 2014 तक केन्द्रीय मंत्री शहरी विकास, दिनांक 28 अक्टूबर,2012 से 26 मई, 2014 तक केन्द्रीय मंत्री संसदीय कार्य रहे, इसके अलावा अनेक समितियों के सदस्य भी वे रहे हैं। अनेक विदेश यात्राएं की हैं और अनेक शिष्ट मंडलों का हिस्सा भी रहे हैं, सत्ता का समय भी देखा और विपक्ष के दौर भी। यह कहा जाए कि उनके पास राजनीति का गहरा अनुभव है। राजनीति में उनके करीबी बताते हैं कि वे संकल्प को लेकर दृढ़ रहते हैं, हार नहीं मानते, उनके व्यवहार और राजनीति के अपने तरीके हैं और वे अपने तरीकों को प्रमुखता से तरजीह देते आए हैं।
वे हारने वाले नेता नहीं हैं :
बात को लेकर मूल विषय पर लौटते हैं लगातार मध्यप्रदेश में जीत दर्ज करती भारतीय जनता पार्टी का विजय रथ रोकने का जो मैजिक कमलनाथ ने 2018 में किया था लेकिन महज लगभग दो वर्षों में ही उनकी सरकार गिर गई, वह मैजिक दोहराया क्यों नहीं जा सका, क्या बदला और कैसे बदला। सबकुछ ऐसे ही एक साथ हर बार हाशिये पर कैसे चला जाता है, चुनाव घोषित होते ही कांग्रेस पूरी ताकत से चुनाव में उतरती तो है लेकिन परिणाम हर बार उसे हाशिये पर धकेल देते हैं, आखिर कैसे बदलेगा यह सब यह कांग्रेस और कमलनाथ दोनों के लिए चिंता का विषय है। जैसा कि मध्यप्रदेश में कहा जाता था कि पूर्व मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान का अपना ओरा और प्रभाव भी चुनावों में बहुत बड़ी भूमिका निभाया करता था तो इस लिहाज से देखें तो इस बार तो भाजपा ने यह चुनाव शिवराजसिंह चौहान के चेहरे की जगह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) के चेहरे पर लड़ा गया। खैर यह भी सच है कि प्रधानमंत्री के चेहरे के कारण यह चुनाव कांग्रेस के लिए पहले से और अधिक कठिन हो गया। बहरहाल सवाल तो उठेंगे और सवालों का कांग्रेस और स्वयं कमलनाथ को सामना भी करना चाहिए और वे कर भी रहे हैं लेकिन जहां तक उनके बारे में जानकार बताते हैं कि वे हारने वाले नेता नहीं हैं, वे जानते हैं कि राजनीति में कुछ भी पलक झपकते नहीं होते, सालों लगते हैं बदलाव में। यही कारण है कि हम देख रहे हैं कि उन्होंने इस हार को स्वीकार करते हुए मध्यप्रदेश के नये मुख्यमंत्री मोहन यादव (Chief Minister Mohan Yadav) से शिष्टाचार भेंट की और प्रदेश के विकास में विपक्ष के पूरे सहयोग का भरोसा भी दिलवाया है, यह उनके मानसिक तौर पर सशक्त होने का प्रमाण है। कमलनाथ ने जिस दौर की राजनीति देखी है, जिस दौर में वे राजनीति के शिखर पर थे उस दौर की राजनीति कुछ और थी, 9 बार लोकसभा के लिए चुनाव जाना अपने आप में उनकी लोकप्रियता का स्तर तो बताता ही है, लेकिन जहां कमलनाथ चूक गए उन बिंदुओं पर उन्हें काम करना चाहिए।
कमलनाथ के मन में चल क्या रहा होगा :
प्रत्येक हार आपको मजबूत बनाती है लेकिन लगातार हार आपके अंदर एक कसैलापन छोड़ जाती है, हालांकि कमलनाथ मन से बेहद मजबूत हैं, उन्हें राजनीति में जीत और हार के मायने भी पता हैं, यह भी सच है कि राजनीति में बदलाव आया है, प्रचार-प्रचार की बात करें या उम्मीदवारों के चयन के मापदंड और चुनावी रणनीति की बात की जाए। यह भी सच है कि उनके दौर की राजनीति अब नहीं रही, राजनीति का वह दौर भी नहीं रहा, मौजूदा दौर की राजनीतिक पटल पर बहुत कुछ बदला है, इस बदले हुए परिदृश्य को कमलनाथ और कांग्रेस को समझना होगा। चुनावी रणनीति में तो वे स्वयं भी माहिर हैं और शतरंज की भांति ही उन्हें भी बिसात बिछाना अच्छे से आता है, बावजूद इसके उनके हिस्से पराजय आई। कहा जाता है कि सीखने की कोई उम्र नहीं होती और राजनीति के विषय में तो कहावत प्रचलित है कि हर दौर और कालखंड राजनीति के नए कायदे गढ़ता है इस दौर में भी कायदे गढ़े जा रहे हैं लेकिन केवल उनका बारीकी से मंथन जरूरी है। इसी चुनावी बाजी में प्रदेश में मिली पराजय बेशक कांग्रेस और उनके चेहतों के लिए गहरी टीस पहुंचा रही होगी लेकिन कड़वा सच तो यही है कि कुछ तो ऐसा है जिसे समझने में और परखने में कांग्रेस और कमलनाथ चूक गए, हालांकि कांग्रेस हाईकमान ने उन पर पूरा भरोसा जताया और चुनावी समर में पूरी ताकत झोंक दी लेकिन एक बार फिर भाजपा की रणनीति और तैयारियों के आगे कांग्रेस परास्त हो गई। यह सवाल भी उठता है कि आखिर प्रदेश में हार के बाद कमलनाथ के मन में चल क्या रहा होगा, मुख्यमंत्री बदले जाने पर अब कांग्रेस की रणनीति क्या होगी, क्या कुछ बदलेगा, क्योंकि इतने वर्ष शिवराजसिंह चौहान के मुख्यमंत्री रहे तो उन्हें घेरने के लिए कांग्रेस और कमलनाथ के पास काफी मुददे थे, इस बार भाजपा ने मुख्यमंत्री के तौर पर नया चेहरा पेश कर दिया है, अब कांग्रेस की रणनीति क्या होगी, कैसी होगी, अगली बिसात कैसे बिछेगी, आलाकमान क्या तय करेगा, कैसे परखा जाएगा अगली रणनीति को यह सब सवाल हैं और चिंतन के विषय भी। बहरहाल कमलनाथ जैसे नेता के लिए हार और जीत मायने नहीं रखती लेकिन हार को जीत में बदलने की ताकत को परखने का अवसर कांग्रेस कब तक और कितनी बार दे पाएगी यह देखना महत्वपूर्ण होगा क्योंकि हिंदी भाषी प्रदेशों से कांग्रेस का सफाया चिंता का विषय है और आने वाले कुछ महीनों में संभवतः लोकसभा चुनाव होने हैं देखना है कांग्रेस के कमलनाथ किस तरह की रणनीति के साथ प्रदेश में कमल के लिए रणनीति बनाएंगे। More
संदीप कुमार शर्मा