Chief Minister Arvind KejriwalChief Minister Arvind Kejriwal

जी हां दिल्ली के वर्तमान मुख्यमंत्री Arvind Kejriwal अब एक बेहद जाना पहचाना नाम हैं, राजनीति में भी और चर्चाओं में भी। एक अलग तरह की राजनीति का उदय हुआ और उसके सूत्रधार वे स्वयं बने। राजनीति में एक दौर था जब देश में दो ही राजनैतिक दल हुआ करते थे कांग्रेस और भाजपा। केंद्र की बात करें तो सालों सत्ता कांग्रेस के पास रही और बाद में एक और दल राजनीति के मैदान में कांग्रेस के सामने आ डटा और वह थी भारतीय जनता पार्टी। होता ये था कि किसी चुनाव में कांग्रेस तो किसी चुनाव में भाजपा की सरकार बना करती थी या फिर गठबंधन की सरकार। आज भी देश के कई प्रदेशों में यही क्रम जारी है, दो ही दलों के बीच राजनीति घूमती रहती है। आखिरकार एक समय वह भी आया जब राजनीति के प्रति आमजन की शून्यता बढ़ने लगी, उस दौर में आम जनता में से बड़े से वर्ग ने चुनावों और राजनीतिक दलों को लेकर अपने आप को निष्क्रिय जैसा बना लिया था। ऐसा भी नहीं था कि सरकारें काम नहीं कर रही थीं लेकिन राजनीतिक पंडित मानते हैं कि वह दौर राजनीति को लेकर शून्यता की ओर बढ़ रहा था।

तब नई उम्मीद बनकर उभरी ‘आप’

इसी समय जन लोकपाल को लेकर एक आंदोलन जमीनी आकार लेता है, भ्रष्टाचार जैसे विषय पर बात होनी आरंभ होती है, भीड़ और भरोसा बढ़ने लगता है और आंदोलन की राह मैदान में उतरे अरविंद केजरीवाल और उनके सहयोगी एक राजनीतिक दल की घोषणा करते हैं और इस तरह Aam Aadmi Party का गठन हो जाता है, यह पार्टी आरंभिक दौर में देश और दुनिया के लिए अनूठी पार्टी के तौर पर उभरी, कार्य का तरीका, नए और अधिकांश पढ़े-लिखे योग्य व्यक्तियों को राजनीति में अवसर देने जैसे निर्णय ने देश के साथ समूचे विश्व का ध्यान खींच लिया। देश और दुनिया से बुद्विजीवी पार्टी का हिस्सा होने लगे और लगा कि यह वह दौर है जब आम आदमी की भी कोई पार्टी है जो आम आदमी की बात कर रही है और भरोसा दिलाया कि आम आदमी की बात सतत करती भी रहेगी। इस तरह अरविंद केजरीवाल शासकीय सेवा से सामाजिक क्षेत्र और सामाजिक क्षेत्र से राजनीति के मैदान तक आ पहुंचे। यह भी कहा जा सकता है कि आम आदमी पार्टी देश के लिए एक नई उम्मीद बनकर उभरी जिसने भरोसा दिलाया कि वह भ्रष्टाचार मुक्त सरकार देगी।


परिवर्तन से ‘आप’ तक-केजरीवाल


आगे आम आदमी पार्टी पर बात करने से पहले कुछ जानकारियों पर नजर डालते हैं मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर जिन्हें समझना और यहां उल्लेखित करना आवश्यक है। अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) का जन्म 16 अगस्त 1968 हरियाणा के हिसार में हुआ। उन्होंने 1986 में आईआईटी खड़कपुर से यांत्रिक अभियांत्रिकी में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। 1992 में वे भारतीय नागरिक सेवा (आईसीएस) के बाद भारतीय राजस्व सेवा (आईआरएस) में आ गए और उन्हें दिल्ली में आयकर आयुक्त कार्यालय में नियुक्त किया गया। उन्होंने महसूस किया कि बहुप्रचलित भ्रष्टाचार के कारण प्रक्रिया में पारदर्शिता की बेहद कमी है। अपनी अधिकारिक स्थिति पर रहते हुए ही उन्होंने भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम शुरू कर दी। प्रारंभ में, अरविंद केजरीवाल ने आयकर कार्यालय में पारदर्शिता बढ़ाने के लिए कई परिवर्तन लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके बाद उन्होंने काम से अवकाश पर ले लिया, इसी दौरान उन्होंने दिल्ली आधारित एक नागरिक आंदोलन- ‘परिवर्तन’ की शुरुआत की। फरवरी 2006 में उन्होंने नौकरी से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद पूरे समय के लिए सिर्फ ’परिवर्तन’ में ही काम करने लगे। उन्होंने सूचना अधिकार अधिनियम के लिए अभियान शुरू किया, जो जल्दी ही एक मूक सामाजिक आन्दोलन बन गया, दिल्ली में सूचना अधिकार अधिनियम को 2001 में पारित किया गया और अंत में राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय संसद ने 2005 में सूचना अधिकार अधिनियम (आरटीआई) को पारित कर दिया। उन्होंने पूरे भारत में आरटीआई के बारे में जागरूकता फ़ैलाने के लिए एक अभियान शुरू किया। दूसरों को प्रेरित करने के लिए उन्होंने अब अपने संस्थान के माध्यम से एक आरटीआई पुरस्कार की शुरुआत की है। कुल मिलाकर कहा जाए तो उनका सामाजिक क्षेत्र में कार्य का खासा अनुभव है और शासकीय क्षेत्र में भी वे काफी समय बिता चुके हैं, इन्हीं सब के बीच उन्हें लगा कि आम आदमी के लिए राह आसान नहीं है, भ्रष्टाचार पर कोई काबू नहीं हो पा रहा है, काफी मंथन के बाद आम आदमी पार्टी की पहले घोषणा की गई और फिर इस तरह यह पार्टी अस्तित्व में आई। इस पार्टी की घोषणा 26 नवंबर 2012 को अरविंद केजरीवाल और लोकपाल विधेयक के लिए हो रहे आंदोलन में उनके सहयोगियों द्वारा की गई।


दिल्ली में मैजिक


वर्ष 2013 के दिल्ली विधान सभा चुनावों में अरविंद केजरीवाल ने नई दिल्ली सीट से चुनाव लड़ा जहां उनकी टक्कर 15 साल से दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं श्रीमती शीला दीक्षित से थी। उन्होंने शीला दीक्षित को 25864 मतों से पराजित किया। अरविंद केजरीवाल को कुल 44269 मत प्राप्त हुए जबकि उनके मुक़ाबले शीला दीक्षित को केवल 18405 मत प्राप्त हुए। आम आदमी पार्टी ने दिल्ली की राजनीति में धमाकेदार प्रवेश किया। पार्टी ने 70 सदस्यीय दिल्ली विधानसभा चुनाव में 28 सीटें जीतकर प्रदेश की राजनीति में खलबली मचा दी। इस चुनाव में आम आदमी पार्टी, भारतीय जनता पार्टी के बाद दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। सत्तारूढ़ काँग्रेस पार्टी तीसरे स्थान पर खिसक गयी। अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में ही फरवरी 2015 के चुनावों में उनकी पार्टी ने 70 में से रिकॉर्ड 67 सीटें जीत कर भारी बहुमत हासिल किया। 14 फरवरी 2015 को वे दोबारा दिल्ली के मुख्यमंत्री पद पर आसीन हुए। पहली बार वे 28 दिसंबर 2013 से 14 फरवरी 2014 तक 49 दिनों तक दिल्ली के मुख्यमंत्री पद पर रहे और कार्य करते हुए वे लगातार सुर्खियों में बने रहे। धमाकेदार अपनी मौजूदगी दर्ज करवाने वाली आम आदमी पार्टी ने अपने आरंभिक जलवा दिखाना आरंभ कर दिया। जनता को इस पार्टी में कुछ अलग सा फील होने लगा था, कुछ ऐसा जैसा वह देखना और सुनना चाहती थी, यही कारण कि जब 2015 में दोबारा चुनाव हुए तो आम आदमी पार्टी को जनता से पलकों पर बैठा लिया और 67 सीटां पर जीत दिलवाई। 2020 में हुए विधानसभा चुनावों में एक बार फिर दिल्ली में आम आदमी पार्टी को भारी भरकम जीत हासिल हुई, 70 में से 62 सीटों पर आम आदमी पार्टी ने कब्जा जमाया और 8 सीटें भारतीय जनता पार्टी के हिस्से गईं, सबसे अधिक बुरे हालात कांग्रेस के हुए जो कभी दिल्ली में सतत सत्ता पर काबिज थी इस चुनाव में एक भी सीट नहीं जीत पाई।


अन्य राज्यों में नज़र नहीं आया मैजिक


यानि कहा जाए तो आम आदमी पार्टी मैजिक कर रही थी। इसके साथ ही पार्टी ने अपने कदम देश के दूसरे राज्यों में भी बढ़ाने आरंभ किए, इस तरह उन्हें दिल्ली के अलावा कांग्रेस के एक और गढ़ माने जाने वाले पंजाब में भी जीत हासिल हुई। इस तरह अब आम आदमी पार्टी दो राज्यों में सत्तासीन हो चुकी थी, लेकिन पार्टी का मैजिक दूसरे हिंदी भाषी राज्यों के चुनावों में नजर नहीं आया क्योंकि उत्तराखंड, मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ में पार्टी कोई कमाल नहीं दिखाई पाई। यहां से सवाल उठने आरंभ हुए कि आम आदमी पार्टी का दायरा क्या दिल्ली और एनसीआर के आसपास तक सिमटकर रह गया है, हालांकि पार्टी हिंदी भाषी राज्यों में अपने को मिले मतों के प्रतिशत को लेकर भी काफी आशावान नजर आई और भविष्य के चुनावों को लेकर अपनी रणनीति में जुट गई।


गठन के बाद बहुत कुछ बदला


ऐसा माना जाता है कि जब जन लोकपाल को लेकर आंदोलन चल रहा था उस दौरान राजनीतिक दलों के इसे लेकर रवैये के बाद एक नई पार्टी बनाने के विचार पर मंथन आरंभ हुआ था। यहां अन्ना हजारे जनलोकपाल आंदोलन को राजनीति से दूर रखना चाहते थे, लेकिन अरविंद केजरीवाल का मानना था कि एक राजनीति पार्टी बनाकर इसके लिए कार्य करने की आवश्यकता है। बहरहाल पार्टी बनाने की घोषणा हुई, अन्ना हजारे के मंच पर अरविंद केजरीवाल की सक्रियता सभी का ध्यान खींच रही थी। जब आम आदमी पार्टी को लेकर पहली बार घोषणा हुई यह एक अलग सा परिवर्तन होता हुआ महसूस हो रहा था। पार्टी बनी तब उसमें नामी गिरामी चेहरे भी नजर आए, लेकिन वर्तमान के हालात को देखेंगे तो आम आदमी पार्टी के पास वह सभी बड़े चेहरे जो आरंभिक तौर पर जुड़े थे अब साथ नहीं हैं। कुल मिलाकर यह पार्टी जो बेहद जोश के साथ खड़ी हुई थी, इसकी गति और मैजिक दूसरे राज्यों में नजर नहीं आ रहा है, पार्टी के दिल्ली और पंजाब विधानसभा में प्रदर्शन के अलावा शेष राज्यों में देखते हैं बेशक सत्ता से पार्टी बहुत दूर रह गई लेकिन आम आदमी पार्टी इन राज्यों में आरंभिक उपस्थिति दर्ज करवाने में कामयाब हो गई। गोवा विधानसभा चुनाव देखें तो 2017 में पार्टी 40 सीटों पर चुनाव लड़ी लेकिन एक भी सीट हासिल नहीं हुई, वर्ष 2022 में हुए विधानसभा चुनावों में गोवा में आम आदमी पार्टी 39 सीटों पर चुनाव लड़ी लेकिन अबकी 2 सीटों पर जीत हासिल हुई। पंजाब विधानसभा में 2017 में हुए चुनावों में 112 सीटों पर पार्टी ने चुनाव लड़ा 20 सीटें जीतने में सफलता हासिल हुई और वर्ष 2022 में हुए विधानसभा चुनाव में 117 सीटों पर चुनाव लड़ा और 92 सीटों के साथ जबरदस्त सफलता हासिल करते हुए दिल्ली के बाद दूसरे राज्य में सरकार बनाई। गुजरात विधानसभा की स्थिति देखें तो 2017 में 29 सीटों पर चुनाव लड़ी लेकिन एक भी सीट नहीं जीत पाई, 2022 के चुनाव में 181 सीटों पर चुनाव लड़ी और 5 सीटें जीतने में सफलता हासिल हुई।

अगले चुनाव कठिन इम्तिहान


लौटते हैं अपनी मूल बात पर क्योंकि 2024 में लोकसभा चुनाव होने हैं और ऐसे में आम आदमी पार्टी भी पूरे दमखम के साथ चुनाव की तैयारियों में जुटी होगी लेकिन विचारणीय प्रश्न यह है कि आखिर दिल्ली वाला वह मैजिक आखिर कहां धुंधला रहा है, आखिर पंजाब में मिली सफलता के बाद देश के दूसरे राज्यों में आम आदमी पार्टी का वह जादू क्यों नहीं चल पा रहा है, मुददे वही हैं, शेष राजनीतिक दल भी वही हैं लेकिन सफलता हासिल नहीं हो पाई। चिरपरिचित अंदाज में अरविंद केजरीवाल देश के दूसरे राज्यों में भी अपनी मेहनत झोंक चुके हैं लेकिन मैजिक नजर नहीं आ रहा है, ऐसे में यह सवाल उठना लाजमी है कि आखिर भविष्य में ‘आप’ की राह क्या है ? अरविंद केजरीवाल आखिर आम आदमी पार्टी को लेकर किस रणनीति पर जाएंगे, क्या नया सोचेंगे, क्या नया लाएंगे क्योंकि यह तो वह भी जान रहे होंगे कि दिल्ली वाला जो मैजिक आरंभिक दौर वाला था और जिसे पूरे देश ने देखा था वह समय के साथ धुंधला रहा है, उसे दोबारा चमक देने के लिए ‘आप’ को कुछ हटकर सोचना होगा। देश के दूसरे हिस्सों के साथ ही देश के प्रमुख चुनाव सामने हैं, देखना है आप की नई रणनीति क्या होगी, क्या वह मैजिक दोबारा सिर चढ़कर बोलेगा, आने वाले चुनाव अरविंद केजरीवाल और ‘आप’ के लिए भी एक कठिन इम्तिहान की तरह ही होंगे, क्योंकि मैजिक यदि दोहराया नहीं गया तो वह धुंधला जाया करता है, बहरहाल हमें समय का इंतजार करना चाहिए।

By Sandeep Kumar Sharma

25 years of journalism in famous Newspapers of the country. During his Journalism career, he has done many stories on Environment, Politics and Films, currently editing the monthly magazine 'Prakriti Darshan', Blogging on Politics, environment and Films. Publication of five books on nature conservation till now.

Related Post