Former Chief Minister Shivraj Singh ChauhanFormer Chief Minister Shivraj Singh Chauhan

मध्यप्रदेश में इस बार हुए विधानसभा चुनाव में एक बार फिर भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी लेकिन मुख्यमंत्री Shivraj Singh Chouhan नहीं बने बल्कि उनकी जगह मोहन यादव ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। जैसा कि राजनीतिक परिदृश्य चल रहा था उसमें इस बार मुख्यमंत्री पद पर परिवर्तन के संकेत स्पष्ट मिल रहे थे। अब प्रदेश को नया मुख्यमंत्री मिल चुका है लेकिन हम बात शिवराज सिंह चौहान की इसलिए कर रहे हैं क्योंकि उनका अपना राजनीतिक जीवन उन्हें एक श्रेष्ठ नेता के तौर पर उभारकर सामने लाता है, देखेंगे कि इस दौर में जब आम व्यक्ति राजनीति पर बात तो करना पसंद तो करता है लेकिन सहज तौर पर नेताओं पर भरोसा नहीं कर पाता ऐसे में एक नेता ने पूरे प्रदेश में मामा बनने का सफर कैसे पूरा किया, कैसे उन्होंने प्रतिनिधि से जन-जन के प्रतिनिधि होकर भावनात्मक रिश्ता बनाने के बेहद कठिन कार्य को सहजता से कैसे किया। उन्हें प्रदेश की राजनीति में एक नए तरीके के परिवर्तन का सूत्रधार भी माना जा सकता है।

ऊर्जावान रवैया और मजबूत जमीनी पकड़- Shivraj Singh Chouhan

वह राजनीति से पहले 1980 के दशक की शुरुआत में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) में शामिल हुए। उनके ऊर्जावान रवैये और मजबूत जमीनी पकड़ ने उनके राजनीति के द्वार खोले और 1990 में भाजपा की ओर से विदिशा सीट से सांसद चुने गए, इसके बार उनका राजनीतिक करियर शुरू हुआ। पार्टी के स्तर पर उनका उत्थान जनता की सेवा के प्रति उनके समर्पण और जनता के सामने आने वाली कठिनाइयों के प्रति उनकी गहरी जागरूकता के कारण संभव हुआ।

 

वार्तालाप का एक तरीका खोजा

यहां सत्ता संभालने के तत्काल बाद काफी सारे परिवर्तन और जन-जन को जोडने वाली योजनाओं को प्रदेश में लागू करने के कारण उनकी पकड़ मजबूत होती गई। उनके मुख्यमंत्री रहते अनेक योजनाएं लागू हुईं, विशेषकर महिलाओं, बेटियों, कमजोर वर्गों और किसानों से उन्होंने सभा के दौरान सीधे वार्तालाप का एक तरीका खोजा और उसका कियान्वयन भी कर दिया।

महिलाएं रोती हुईं और बिलखती हुईं नजर आईं

हाल ही में एक वीडियो सोशल मीडिया में खूब वायरल हो रहा है कि जब शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री नहीं रहे तो काफी महिलाएं रोती हुईं और बिलखती हुईं नजर आईं, यह नजारा भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने भी देखा है, इससे उनकी लोकप्रियता का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है।

कुछ अलग सा जादू था

मूलतः मध्यप्रदेश का होने के कारण और देश के ख्यात अखबारों में कार्य करने के दौरान तकरीबन एक दशक का दौर में भाजपा शासन भी देखने को मिला, उस दौरान अनेक सभाएं सुनीं और उन्हें लिखा, उस संवाद करने के अंदाज से बहुत कुछ अलग सा जादू था, ऐसा लगा जैसे जनता और जन प्रतिनिधि के बीच की दूरी पट रही है, खत्म हो रही है।

राजनीति के गहरे जानकार Shivraj Singh Chouhan

ऐसा माना जाता है कि मध्य प्रदेश वह राज्य है जहां पर शिवराज सिंह चौहान ने अपनी अमिट छाप छोड़ी है, उनकी गहरी छाप वहां की जनता और राजनीति के गहरे जानकार भी महसूस करते हैं। 2005 में राज्य के मुख्यमंत्री बने और गहन परिवर्तन के दौर में उन्होंने नेतृत्व संभाला। समावेशी विकास, कृषि सुधार और बुनियादी ढांचे में सुधार पर जोर ने चौहान के नेतृत्व के एक मजबूत पक्ष को जनता के सामने उभारा।

उनका प्रदेश की जनता से गहरा जुड़ाव था

हमने देखा और सुना है कि जैसे ही वे अपना उदबोधन आरंभ करते थे तो दोनों हाथ जोड़कर कहा करते थे कि मेरी समस्त माताओं-बहनों को मेरा प्रणाम, मेरी प्यारी भांजियों को खूब दुलार और प्यार। मैं आपका भाई हूं और बेटियों का मामा, आपको बेटियों की चिंता करने की जरुरत नहीं, वे बोझ नहीं हैं, उनके जन्म से लेकर उनकी उच्च शिक्षा और विवाह तक सभी खर्च सरकार उठाएगी, आपका यह भाई उठाएगा, उनका मामा उठाएगा।वाकई उनके शासन के दौरान बच्चियों के जन्म से लेकर उनकी पढ़ाई, उनकी उच्च शिक्षा, उनकी विदेश में शिक्षा से लेकर उनके विवाह तक की योजनाएं बनीं और लागू भी की गईं।यह केवल शब्द नहीं होते थे, इसमें महिलाओं से सीधे वार्तालाप होता था, चर्चाओं में वे खेती की, किसानों की पूछ परख भी कर लिया करते थे, फसल का संकट, खाद का संकट, दवाओं का संकट जैसे विषयों पर सीधे तौर पर वार्तालाप हुआ करता था।सहज तौर पर वे बात करते और उन्हें उतनी ही सहजता से जनता के बीच से जवाब भी मिला करते थे, वाकई उनका प्रदेश की जनता से गहरा जुड़ाव था और वह आखिर तक बना रहा, यही कारण था कि जब वे मुख्यमंत्री नहीं रहे तब विशेषकर महिलाओं के गले रुंध गए और वह बिलखकर रो पड़ी।

मामा के तौर पर याद किए जाते रहेंगे

राजनीति में वाकई ऐसे रिश्ते और ऐसी ही सहजता होनी चाहिए, जनता इतना करीब हो कि आपसे अपने मन की कहने के लिए उसे इंतजार न करना पडे, कोई दूरी महसूस न हो। हालांकि शिवराज सिंह चौहान अब मुख्यमंत्री नहीं हैं, लेकिन यह राजनीति है पता नहीं वे दोबारा मुख्यमंत्री बन जाएं अथवा वरिष्ठ होने के नाते शीर्ष राजनीति की ओर अग्रसर हो जाएं…लेकिन मध्यप्रदेश में उनके जैसा नेता जो जनप्रतिनिधि से जन-जन का प्रतिनिधि होकर नेह के रिश्तों में बंध गया, वे अरसा मामा के तौर पर याद किए जाते रहेंगे। Mor

 

By Sandeep Kumar Sharma

25 years of journalism in famous Newspapers of the country. During his Journalism career, he has done many stories on Environment, Politics and Films, currently editing the monthly magazine 'Prakriti Darshan', Blogging on Politics, environment and Films. Publication of five books on nature conservation till now.

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