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हालिया विधानसभा चुनाव में भाजपा की सफलता के बाद एक बार फिर साबित हो गया है कि राजनीति और रणनीति दोनों ही इस दौर में बेहद जरुरी हैं, भाजपा की राजनीतिक यात्रा के कई सफर हैं और कई मुकाम लेकिन वर्तमान दौर पार्टी के स्वर्णिम काल में तौर पर हमेशा याद किया जाता रहेगा। पार्टी की तीन राज्यों मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में सफलता का परचम लहराया और उन सभी कयासों और अनुमानों को धराहाशी कर दिया कि सतत केंद्र और राज्यों में सरकार रहने के कारण जनादेश विचलित हो सकता है, विपरीत हो सकता है, खिसक सकता है। भाजपा के इस सफलतम दौर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मैजिक हर बार चमत्कृत करता है और यही कारण है कि पहले से बेहतर और बेहतर से श्रेष्ठ की ओर पार्टी और कार्यकर्ता अग्रसर हो रहे हैं। वर्तमान दौर कहा जा सकता है कि भाजपा हाईकमान की रणनीति विपक्षी दलों के लिए अबूझ पहेली की तरह है, यह भी कहा जा सकता है कि इस चुनावी चक्रव्यहू में विपक्षी दल हर बार दाखिल तो होते हैं लेकिन जीत का सेहरा भाजपा के ही सिर बंधता है।

कार्ययोजना, क्रियान्वयन और गोपनीयता बरकरार रखने का प्रबंधन :


यहां एक और बात है जिसे रेखांकित किया जाना चाहिए वह है भाजपा हाईकमान की कार्ययोजना, क्रियान्वयन और विषयों की गोपनीयता को आखिर तक बरकरार रखने का प्रबंधन। चुनाव हर बार होंगे, कोई न कोई दल जीतेगा, कोई पराजित होगा, सरकार आएंगी जाएंगी लेकिन इस पार्टी के आलाकमान ने सफलता के लिए जो रूट मैप बनाने पर मेहनत की है वह अपने आप में प्रशंसनीय है और उदाहरण भी है दूसरी पार्टियों के लिए। सीखने की कोई उम्र नहीं होती और सीखा तो विरोधी से भी जा सकता है। जहां तक पार्टी में प्रबंधन की बात की जाए तो वर्तमान गृह मंत्री और पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का कोई सानी नहीं है। मौजूदा राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नडडा भी पार्टी के इस सफलतम दौर अपने बेहतर निर्णयों के लिए पहचाने जा रहे हैं।
मैं अपनी बात कहूं तो जब हम कॉलेज लाइफ में थे तब एकमात्र कांग्रेस ही सर्वेसर्वा पार्टी होती थी, चुनाव प्रचार से लेकर जीत के पूर्व अनुमानों में हमने कांग्रेस को ही बेहद प्रबल पाया लेकिन समय बदलता गया।

जनसंघ से भाजपा तक :


हम आरंभिक दौर की बात करें तो 21 अक्टूबर 1951 को भारतीय जनसंघ को गठन हुआ और इसके संस्थापक के तौर पर डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को याद किया जाता है, राजनीति में सर्वोच्च सत्ता तक पहुंचने का संघर्ष भी लंबा रहा और यादगार भी। पार्टी सीखते, सिखाते, आदर्शों को अंकुरित करते हुए, राजनीतिक बिसात पर चलना सीखने लगी और मौजूदा दौर की सफलता सभी के सामने हैं, यह वह दौर है जब भाजपा राजनीति में कई सारे महत्वपूर्ण बदलावों के लिए भी पहचानी जाएगी। यहां पहले भाजपा के पूर्व अध्यक्षों की बात भी अवश्य की जानी चाहिए क्योंकि पार्टी को सींचने और उसे सफलता की दहलीज तक लाने में गहरी भूमिका रही है। इनमें अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवानी, डॉ, मुरली मनोहर जोशी, कुशाभाऊ ठाकरे, बंगारू लक्ष्मण, के.जना कृष्णामूर्ति, एम.वेंकैया नायडू, नितिन गडकरी, राजनाथ सिंह, अमित शाह, जगत प्रकाश नड्डा के नाम पार्टी में बेहद सम्मान से लिए जाते हैं।

मैजिक पर बात :


अक्सर होता यह है कि जब चुनावी बिसात बिछती है तो आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी चलता है, सत्ता पक्ष और विपक्ष अपने-अपने दावां और वादां को मतदाताओं के सामने पेश करते हैं, यहां बात भाजपा आलाकमान के मैजिक की करें तो बहुत सा ऐसा है जिस पर अक्सर बात होती है और आगे सालों तक बात होती भी रहेगी। भाजपा ने जिस तरह से सफलता के शीर्ष पर मजबूती से पहुंचने सफर तय किया है उसमें उसकी अपनी विचारधारा है, चिंतन है और अपनी रणनीति। मैजिक यह रहा कि इस पार्टी के सफलता की ओर बढ़ने के दौरान कई मिथक भी टूटते नजर आए। सबसे पहले जो सख्त कदम जो उठाया गया वह यह रहा कि पार्टी में नेताओं की उम्र पर बात होना आरंभ हुई, वरिष्ठ नेताओं की जगह पार्टी में युवाओं और उम्र की दायरे में आने वाले राजनीति में गहरी समझ रखने वालों नेताओं के लिए अवसर आरंभ हुए। महत्वपूर्ण बात यह रही कि चुनाव के महीनों पहले पार्टी, वरिष्ठ नेताओं, पदाधिकारियों और कार्यकताओं के बीच चुनाव संबंधी पार्टी की भावी योजनाओं की सूचनाओं का समय रहते निर्धारण हो जाता है। शीर्ष नेतृत्व चुनावी होमवर्क बहुत पहले ही पूर्ण कर उसके क्रियान्वयन में जुट जाता है।

यहां से बदलाव आरंभ हुआ :


यहां यह जिक्र करना भी बेहद जरुरी है कि पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के हाथ जब पार्टी की कमान आई तो पार्टी में नवाचार की प्रक्रिया पर तेज गति से कार्य आरंभ हुआ। नियमों को सख्त किया गया और चुनाव की रणनीति पर बेहद महीन चिंतन और रणनीति को सृजित करना आरंभ हुआ। एक के बाद एक चुनावों में भाजपा की जीत ने सभी पुराने रिकार्ड ध्वस्त कर दिए हैं, भाजपा की इस स्वर्णिम पारी में महत्वपूर्ण बदलाव आया और पार्टी प्रचार के डिजिटल दौर में प्रवेश कर गई। वर्तमान दौर की बात करें तो चुनाव के प्रचार के तरीके से लेकर प्रत्याशी के चयन तक सभी राह पार्टी हाईकमान से होकर ही निकलती हैं। यह वह दौर था जब पार्टी में सख्त निर्णय लिए जाने आरंभ हुए और निर्णयों को स्वीकार करने के बाद कार्यकर्ताओं और पार्टी को भरोसे वाली जीत की राह नजर आने लगी।

सस्पेंस बरकरार, सभी को चौंकाया :


मौजूदा दौर में तीन राज्यों में भाजपा की अभूतपूर्व जीत हासिल हुई, इसमें भी पार्टी आलाकमान का प्रबंधन रेखांकित किया जाना चाहिए। चुनाव को गए, एग्जिट पोल भी सामने आए, नतीजों ने भाजपा के सिर जीत का सेहरा बांधा। चुनाव परिणामों के बाद इस बार सीधे मुख्यमंत्री घोषित नहीं किए गए, बल्कि इस बार का चुनाव तो मुख्यमंत्री की जगह प्रधानमंत्री के चेहरे पर लड़ा गया। मंथन होता रहा, कई दौर मीटिंग हुईं, दिल्ली, भोपाल, जयपुर, रायपुर सभी में राजनीतिक गहमागहमी बनी रही। यहां पुराने कद्ावर नेताओं में मसलन मध्य प्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, राजस्थान में वसुंधरा राजे और छत्तीसगढ़ में रमन सिंह इस पूरे चुनाव में चर्चा का विषय रहे क्योंकि मुख्यमंत्री के चेहरे के बिना इस बार भाजपा इस चुनावी समर में उतरी थी, आशय साफ था चुनाव परिणाम के बाद मुख्यमंत्री का चयन किया जाएगा, बैठकों का दौर चलता रहा, कई नाम जो चर्चाओं में रहे उनमें पूर्व मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान, भाजपा राष्टीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय, वरिष्ठ भाजपा नेता नरेंद्र सिंह तोमर और कांग्रेस से भाजपा में आए ज्योतिरादित्य सिंधिया का नाम चर्चाओं में रहा, पर्यवेक्षकों की टीम भी नियुक्त की गई, मंथन और चर्चा इन्हीं प्रमुख नामों के इर्दगिर्द घूम रही थी लेकिन पार्टी आलाकमान ने जिसे मुख्यमंत्री के तौर पर चुना वह नाम न तो चर्चाओं में था और न ही कोई उस ओर सोच रहा था।

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव, राजस्थान के भजनलाल शर्मा, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय :

मुख्यमंत्री के तौर पर मध्यप्रदेश में मोहन यादव का नाम सामने आया, इस नाम से सभी अचंभित हो गए क्योंकि वरिष्ठों की सूची में से कोई भी नाम फायनल नहीं हुआ। मोहन यादव उज्जैन दक्षिण विधानसभा सीट से विधायक चुने गए है। इसी तरह छत्तीसगढ की बात करें तो यहां भी मुख्यमंत्री के तौर पर नया चेहरा सामने आया है विष्णुदेव साय यहां के मुख्यमंत्री होंगे। इसी तरह राजस्थान में भी मुख्यमंत्री का चेहरा नया है वहां भजनलाल शर्मा को मुख्यमंत्री बनाया गया है।

नए चेहरों को लांच करने का अदम्य साहस :


हम अपने मूल विषय पर लौटते हैं कि यहां मैजिक यह रहा कि इस पार्टी में हाईकमान ही महत्वपूर्ण है और निर्णयों में प्रमुख भूमिका भी वहीं की होती है, आखिर तक सस्पेंस कायम रहा, चुनाव जीत के बाद नामों के इर्दगिर्द कयास चक्कर लगाते रहे लेकिन जो नाम आए उन्होंने सभी को चौंका दिया। ऐसा ही कुछ राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति के चुनाव के दौरान भी देखा गया कि प्रत्याशी कौन होगा और कहां से होगा कोई नहीं जानता वह तो केवल भाजपा का हाईकमान तय करता है और यदि राजनीतिक दलों के तौर पर बात करें तो सफलता के लिए यह बेहद महत्वपूर्ण भी हो जाता है। आखिर तक सस्पेंस कायम रहना और उस निर्णय के लिए जाने के पीछे हाईकमान के पास किसी रूट मैप का होना यह बताता है कि भाजपा ने राजनीति को न केवल नए आयाम दिए वरन यह भी स्पष्ट संदेश कई बार पहुंचता है कि पार्टी में चेहरे और नाम महत्वपूर्ण नहीं हैं, नए चेहरों को मजबूती से लांच करने का अदम्य साहस पार्टी अपने अंदर रखती है और यही कारण है कि भाजपा चुनावी बिसात पर हर परीक्षा में शत-प्रतिशत सफलता हासिल करती जा रही है, कार्यकर्ताओं के लिए यह संबल बंधाने वाले उदाहरण हैं कि पार्टी का रूट मैप तो हर बार तैयार होगा, आप जुटे रहिए पूरी निष्ठा से, संभव है आप आलाकमान के चयन के खाके में फिट बैठ जाएं…।

By Sandeep Kumar Sharma

25 years of journalism in famous Newspapers of the country. During his Journalism career, he has done many stories on Environment, Politics and Films, currently editing the monthly magazine 'Prakriti Darshan', Blogging on Politics, environment and Films. Publication of five books on nature conservation till now.

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