भाजपा आज जिस शिखर पर है उसका रथ आरंभिक दौर में जिनके कांधों पर था उनमें से एक वरिष्ठ भाजपा नेता श्री लालकृष्ण आडवाणी भी हैं, आज जब बात चली कि उन्हें देश का सर्वोच्च ‘भारत रत्न’ सम्मान दिए जाने की घोषणा हुई है तब एक बार फिर काफी कुछ बहुत पुराना समय आंखों के सामने से होकर गुजर गया। आज जो भाजपा का विजय रथ है उसे यहां तक लाने में अनेक नाम हैं उनमें से ही आडवाणी भी प्रमुख हैं, उम्र के इस पढ़ाव पर यकीनन यह सम्मान उनकी और उनके परिवारजनों की आंखों को नम कर गया होगा लेकिन यह भी सच है कि उन्हीं से भाजपा के सपने साकार हो सके, उन्होंने ही भाजपा के लक्ष्य बनाए और उन लक्ष्यों को अपनी मेहनत, सूझबूझ और राजनीतिक समझ से आगे बढ़ाया, आज जब देश में भाजपा सबसे ताकतवर और मजबूत पार्टी के तौर पर नजर आ रही है उसे आडवाणी सहित अनेक वरिष्ठ नेताओं और चिंतकों ने अपने दौर में मेहनत से सींचा है। विशेषकर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का उल्लेख यहां बेहद जरुरी है क्योंकि जब आडवाणी पार्टी की राह बनाने में व्यस्त थे तब वे खामोशी से उनके साथ उस राह का विश्लेषण करते हुए एक चिंतक के तौर पर साथ चलते रहे। श्री लालकृष्ण आडवाणी को भारत रत्न सम्मान दिए जाने का निर्णय निश्चित ही बेहद सराहनीय निर्णय कहा जा सकता है। यह भी कहा जा सकता है कि आज भाजपा जिस विजय रथ पर सवार है उसके सारथी श्री लालकृष्ण आडवाणी ही हैं।
जीवन देश की सेवा में समर्पित कर दिया
श्री लालकृष्ण आडवाणी का जन्म 8 नवंबर 1927 को हुआ, वे विभाजन-पूर्व सिंध में पले-बढ़े। कराची के सेंट पैट्रिक स्कूल में भी अध्ययन किया। मात्र चौदह वर्ष की आयु में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) में शामिल हो गए और उन्होंने अपना जीवन देश की सेवा में समर्पित कर दिया है। पूर्व उपप्रधानमंत्री, पूर्व गृहमंत्री और भाजपा के कद्ावर नेता श्री लालकृष्ण आडवाणी के नाम इस सम्मान की जैसे ही घोषणा हुई दोबारा एक बार इस नेता पर बात करने की प्रबल इच्छा हुई और यही कारण है कि हम उनके उस दौर पर बात करने को तत्पर हैं। पहले की बात करें तो 1986 से 1990, 1993 से 1998, 2004 से 2005 तक वे भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे।
मैजिक को तोड़ना भी एक चुनौती थी
आरंभिक दौर की बात करें तो भाजपा के लिए दिल्ली की राह आसान नहीं थी, दिल्ली पर एकछत्र कांग्रेस का राज था और उस दौर में कांग्रेस का अपना मैजिक था। आडवाणी के सामने यहां दो चुनौतियां थीं, पहला कांग्रेस के उस मैजिक को तोड़ना और दूसरी ये कि उस मैजिक वाले दौर में भाजपा के लिए राह तलाशना, लेकिन उन्होंने राह भी बनाई और भाजपा को सत्ता तक पहुंचाने की दिशा भी दिखाई, वे 1999 से 2004 तक श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी के मंत्रिमंडल में उप प्रधानमंत्री रहे। उनके दौर के नेताओं का कहना था कि लालकृष्ण आडवाणी ने ’राष्ट्रवाद में अपने मूल विश्वास से कभी समझौता नहीं किया, वे मजबूत बौद्धिक क्षमता, सिद्धांतों और मजबूत विचारों के लिए पहचाने जाते थे। एक दौर था जब श्री अटल बिहारी वाजपेयी और श्री लालकृष्ण आडवाणी शीर्ष नेताओं के तौर पर भाजपा की नींव मजबूत करने का कार्य कर रहे थे और दोनों का समन्वय पूरे देश ने देखा है और उस समन्वय को देश ने स्वीकारा भी।
भाजपा को राष्ट्रीय राजनीतिक ताकत बनाने में जुट गए
हम बात करें तो 1980 के दशक के उत्तरार्ध और 1990 के दशक के दौरान श्री लालकृष्ण आडवाणी ने भाजपा को राष्ट्रीय राजनीतिक ताकत बनाने के एकमात्र लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित कर दिया। उनके प्रयासों के नतीजे भी आने लगे, पार्टी ने 1984 की अपनी 2 सीटों से वापसी करते हुए 1989 के चुनाव में 86 सीटें हासिल कीं। इससे आगे यह सफर चलता गया, पार्टी बेहतर की ओर अग्रसर होती गई। 1992 में 121 सीटों और 1996 में 161 सीटों तक पार्टी पहुंच गई। 1996 के चुनावों को भारतीय लोकतंत्र में एक ऐतिहासिक मोड़ के तौर पर देखा जाता रहा है। आजादी के बाद पहली बार ऐसा अवसर आया कि भाजपा लोकसभा में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी।
उनकी यात्राओं ने बढ़ाया भाजपा के प्रति भरोसा
राजनीति को समझने वाले जानते हैं कि उस दौर में श्री लालकृष्ण आडवाणी की यात्राएं कितनी मायने रखती थीं। उनकी यात्राओं ने भाजपा के संदेश को जन-जन तक पहुंचाने का कार्य किया। इन यात्राओं के लिए उन्होंने खासी मेहतन की, गहरी रणनीति और राजनीति इस दौर में देखने को मिली। उन्होंने राम रथयात्रा, जनादेश यात्रा, भारत सुरक्षा यात्रा, स्वर्ण जयंती रथयात्रा, भारत उदय यात्रा निकाली। इन यात्राओं का इतना खासा प्रभाव रहा कि देश भर में भाजपा के लिए एक जमीन तैयार हुई और कांग्रेस जो एकमात्र शक्तिशाली राजनीतिक दल हुआ करता था उस समय कहीं न कहीं इन यात्राओं ने भाजपा मजबूती से खड़ा कर दिया। राष्ट्रीय अध्यक्ष के तौर पर पार्टी को मजबूती से खड़े करने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही।
उस दौर की भाजपा और इस दौर की भाजपा
उस दौर की भाजपा बहुत अलग थी, दो वरिष्ठ नेताओं श्री अटल बिहारी वाजपेयी और श्री लालकृष्ण आडवाणी के विचारों, परामर्श और चिंतन पर बेहतर की ओर अग्रसर थी। उस दौर में केंद्र में सरकार बनाना और उसे पांच साल चलाना भी एक चुनौती हुआ करती थी, भाजपा ने अनेक दलों के साथ मिलकर सरकार बनाई, हालांकि यह भी कहा जाता है कि दौर में भाजपा ने संयुक्त दलों के साथ मिलकर सरकार बनाकर पांच साल चलाई और यह कारनामा भी कर दिखाया, लेकिन भाजपा के लिए सफलता की एक ठोस राह वरिष्ठ नेता बनाते रहे। इस दौर की भाजपा अलग है, इस दौर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री और पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह, वर्तमान राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा उस राह चलकर भाजपा को मजबूती प्रदान कर चुके हैं, वर्तमान में भाजपा देश में सबसे मजबूत पार्टी बनकर उभरी है। इस दौर में भाजपा देश भर में अकेले अपने दम पर सरकार बनाने की ताकत रखती है लेकिन देखा जाए तो इसका पथ तैयार करने का श्रेय भी उन वरिष्ठ नेताओं को जाता है जिन्होंने इसे अपने चिंतन और विचारों से सींचा है और श्री लालकृष्ण आडवाणी भी उन्हें में से एक हैं।
उनका दौर धरोहर की तरह
भाजपा के कार्यकर्ताओं में इस बात को लेकर खासा उत्साह है कि उनके वरिष्ठ नेता को भारत रत्न सम्मान दिया जा रहा है। राजनीति में एक पूरी उम्र जीने और पार्टी को अपनी मेहतन से सींचने का प्रतिफल ही है। श्री आडवाणी का वह दौर भाजपा के लिए एक धरोहर माना जाना चाहिए वह दौर भाजपा को हमेशा सिखाता रहेगा कि उसकी यात्रा कहां से आरंभ हुई और कितनी मुश्किलों से वह शीर्ष तक पहुंची है।